दो दिन के लिए
ये दौड़ता शहर छोड़े.
चलो चलो ,
गाँव की ओर होले.
शहर में आदतन
नींद आई कहाँ?
दुविधा से दूर,
पीपल की छाव में सोले.
दिनभर की आपाधापी
माथापची, उफ़.
दिमाग फॉर्मेट कर
सरसों के खेत टटोले.
बहुत हुई
आगे से राईट, लेफ्ट,
घर का रास्ता अब
मुंडेर से ले ले .
काम का दायरा
बढ़ाये............
पतंग काटे.
बेफिक्री के गुल्लक फोड़े,
शहर से दूर गाँव में,
बरगद वाले
टायर पे झूले.
बगिया से टिकोले तोड़े.
चलो चलो
गाँव की ओर होले.
good one again ......... keep writing :)
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