Saturday, April 24, 2010

raat tanha hai

दिन की रौशनी में ,
सब दिखता हैं.
रात को देखा ख्वाब भी
दिन को निखरता हैं.

दिन हैं,
कुछ भी कर सकती हु मैं.
उजाले में,
सड़कों  से लड़ सकती  हु मै.

कुछ भी छुपा नही है,
सब तो काम पर हैं.
थके हारो की नज़र,
तो बस शाम पर है.

नदी को तो मतलब नही,
दिन हैं या रात हैं.
सागर तक पहुच जाये
तो कोई बात है.

बादल और सूरज
लड़ रहे हैं.
किस को है फिकर ,
कुछ तो कर रहे हैं.

अस्तित्व का डर है,
सब खुद में मगन है.
बेख़ौफ़, बंजारा ,
तो बस पवन है.

दिन,
दिन कितना मुश्किल है .
पर........रात ,
रात कितनी तनहा हैं.

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