प्रकृति की तो बात ही है निराली,
न मानो तो देख लो-
बहता हुआ नीर या कोयलों की कवाली.
गगन नापने चले चिडियो की टोली.
उधार्वपातित होती हुई ओस,
ओस के ऊपर फूलो में छिपी कोई रंगोली.
प्रकृति थोड़ी सी विचित्र है.
पर्वत ऊँचे, सागरों में केवल पानी,
फिर भी देखो दोनों मित्र हैं.
कहीं तो दूर दूर तक बर्फ जमी है.
कहीं हिलोर मारती लहरें हैं,
रेत से जिनको कोई दुश्मनी है.
पीपल का पेड़ भी कितना घना हैं.
और कमल को तो देखो -
राजा है, फिर भी कीचड़ से सना है.
No comments:
Post a Comment