Thursday, July 8, 2010

MERI SAJNI

दुप्पटे की ओट में,
खुद को छिपाए.
इंतज़ार में,
पलकें बिछाए.

मेरी सजनी.

खामोश है वो.
पर दिल बोल रहा हैं.
कुमकुम में
मेरे लिए ही शोर रहा है.

मेहँदी का रंग
भी सूखे जाये.
मेरी यादों को
सीने से लगाये.

मेरी सजनी

मैं दूर बहुत,
पर तू पास है मेरे.
तुझे लेकर,
मेरे सपने है बहुतेरे.

कजरिया वाले
नयनों को भिन्गाये.
सखियों के संग,
मेरे ही लिए गाये.

मेरी सजनी.

Wednesday, July 7, 2010

PRAKRITI

प्रकृति की तो बात ही है निराली,
न मानो तो देख लो-
बहता हुआ नीर या कोयलों की कवाली.

गगन नापने चले चिडियो  की टोली.
उधार्वपातित होती हुई ओस,
ओस के ऊपर फूलो में छिपी कोई रंगोली.

प्रकृति थोड़ी सी विचित्र है.
पर्वत ऊँचे, सागरों में केवल पानी,
फिर भी देखो दोनों मित्र हैं.

कहीं तो दूर दूर तक बर्फ जमी है.
कहीं हिलोर मारती लहरें हैं,
रेत से जिनको कोई दुश्मनी है.

पीपल का पेड़ भी कितना घना हैं.
और कमल  को तो देखो -
राजा है, फिर भी कीचड़ से सना है.